प्रिया के घर के सामने वाले खाली घर में महीनों से सन्नाटा पसरा था। उस घर के आँगन में धूल से नहाये हुए पत्ते, हवा के साथ यहाँ से वहाँ उड़ते नज़र आते थे। जगह-जगह पत्तों के छोटे-छोटे ढेर कचरे में अटक कर एकत्रित हो जाते और अपनी बर्बादी की कहानी ख़ुद ही बताते थे कि जब से उन्होंने वृक्ष को छोड़ा या यूं भी कह सकते हैं कि जब से वृक्ष ने उन्हें छोड़ा, उनकी ज़िन्दगी इसी तरह आवारगी की भेंट चढ़ गई है। यहाँ से वहाँ, इधर से उधर, उड़ते रहना ही उनका भाग्य हो गया है। कभी-कभी