काश.... लेकिन कितने????.. 2

उसके व्यवहार में गहरी आत्मीयता थी, स्वाभाविकता थी जिससे मैं सहज होने लगा। बातें उसने ही शुरू कीं। अकादमी की, ट्रेनिंग की, अनुभवों की, स्टाफ की। कुछ देर तक हम लोग पुरानी यादों में डूबते उतराते रहे। आखिरकार मैंने कह ही दिया-"ये सिगरेट कब से पीना शुरू कर दिया तुमने?""तुम कहते हो तो नहीं पीती... लो फेंक दी," वो मुस्कराई मानो उसने मेरा मन पढ़ लिया हो। वापसी में उसने मुझे घर छोड़ने का प्रस्ताव दिया जिसे मैंने टाल दियाइसके बाद हम लोग लगातार चार पांच बार मिले। हफ्ते दस दिन के अंतराल पर, छोटे शहर की छोटी छोटी छोटी