विवेक के पूरी बात सुनने के बाद इशांक ने पलट कर कनिषा को एक नजर देखा,उससे काफी दूर खड़ी वो लगातार हर्षित को घूर रही थी,विवेक की नजरों को पीछा करते हुए इशांक ने देखा.... कनिषा और हर्षित एक दूसरे को ऐसे घूर रहे थे...जैसे दोनो आंखो से ही गोली चला रहे हों,,एक लंबी सांस को भरते हुए इशांक ने विवेक के हाथ से पेन लिया और खुद में ही बड़बड़ाया...."क्या बचपना है, पता नही मैं तुम्हारी बात क्यों माना रहा हूं!"इशांक का ध्यान कहीं और देख विवेक ने कनीषा को पास आने का इशारा किया और बोला...."आपको भी साइन