भूत का सच बात काफी पुरानी है। या यूँ कहिये कि उस समय तक टेलीविजन का आविष्कार नहीं हुआ था। देहात और दूर-दराज के छोटे कसबों में मनोरंजन का साधन पुराने किस्से-कहानियाँ व गप्पी लोगों की झूठी अपितु मसालेदार बातें हुआ करती थी। कहानी सुनने की ललक में बूढ़े दादा-दादी, नानी या कभी-कभी पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग की खुशामद व बेगार करनी भी भली और सुखदायी लगती थी। रबी और खरीफ की लहलहाती फसलों की ऋतुओं की भाँति किस्से, कहानियों और गप्पों की भी अपनी एक अलग ऋतु होती थी। जिसकी कालावधि जेष्ठ मास से आरम्भ होकर आषाढ़