साथिया - 113

शालू के हाथ पाँव  ठंडा पड़ रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? एक पल को तो उसे लगा के  अबीर   और मालिनी को खबर करे  पर वह जानती थी कि अबीर ड्राइव कर रहे होंगे और काफी दूर निकल गए होंगे। इसलिए उसने अभी शांत रहकर अक्षत के  आने तक इंतजार करने का करना ही ठीक समझा। थोड़ी देर में अक्षत  अबीर के घर पहुंच गया था। "क्या हुआ दरवाजा  खोला उसने..??" अक्षत ने परेशान होकर कहा। "नहीं अक्षत भाई वह दरवाजा नहीं खोल रही है..! और अब तो उसकी आवाज भी नहीं आ रही है। मुझे