साथिया - 98

  • 768
  • 318

ईशान अपनी बात कर बाहर जा चुका था और अरविंद और साधना के पास कोई दलील नही थी उसे समझाने की। ईशान के दर्द और तकलीफ को शालू के जाने के बाद न सिर्फ उन्होंने देखा था बल्कि महसूस किया था। इन दो सालों मे जो ईशान सबके सामने आया था वो पहले जैसा नही था। एक चलबुला हंसमुख इंसान आज एक संजीदा बिजनेसमैन था जिसके चेहरे पर पुरानी मुस्कान यदा कदा ही दिखती थी। "डोन्ट  वरी अंकल डॉन'ट वरी आंटी वह ठीक हो जाएगा। एक बार शालू  यहां आ जाए उसके बाद ज्यादा दिन तक उससे नाराज नहीं रह पाएगा। और यह