साथिया - 93

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अक्षत गेस्ट रूम में अपने बेड पर लेटा छत को एक तक देख रहा था। आंखों के आगे कभी सांझ  का  पुराना चेहरा तो कभी सांझ  का आज का चेहरा यानी कि माही का चेहरा घूम रहा था और आंखें रह रहकर भर आ रही थी। "यह बात सच है कि तुमसे दिल का रिश्ता है..! बहुत गहरा रिश्ता है पर  कहते हैं ना कोई भी रिश्ता जुड़ता है तो उसकी शुरुआत इंसान  के चेहरे से होती है।  तुम्हारी उस भोली भाली सांवली सूरत को दिल में न जाने कितने सालों तक बसाया रखा था तब जाकर तुमसे अपनी मोहब्बत का