दादा जी दादा जी यूँ तो अति दयालु और कोमल हृदय के धनी थे। परन्तु उनके दमकते चेहरे का रोआब कुछ भिन्न ही कहानी कहता था। गुँथा हुआ दोहरा बदन, सूर्ख चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछें और चौड़े ललाट के ऊपर सफेद चंदन की तीन रेखाएं। यही उनकी पहचान थी। बेचारे अपने एक मात्र पौत्र से अति स्नेह रखते थे। परन्तु पता नहीं वह आठ वर्ष का नन्हा किशलय उनसे क्यों कन्नी काटता था। दादा जी उसे अपनी गोद में बैठा कर कहते: ‘'बेटा किशलय! मैं तुझे पढ़ने के लिये काशी जी भेजूंगा। वहाँ पर संस्कृत भाषा के एक महान