भाग-4 प्रदीप श्रीवास्तव इस संशय के बीच एक बजते ही मैं बात करने के लिए मोबाइल उठाता और फिर रख देता। डर यह भी था कि कहीं धनश्री जाग गई तो? बड़ी देर तक तरह-तरह की उलझनों से लड़ने के बाद आख़िर दो बजे छत पर जाकर उन्हें कॉल की। दो रिंग होने के बाद ही उन्होंने कॉल रिसीव कर ली। उन्होंने हेलो कहा। आवाज़ पहचान कर मैंने जैसे ही उनका नाम लिया, तो वह हँसती हुई बोलीं, 'कॉल करने की हिम्मत जुटाने में एक घंटा लग गया।' मैंने कहा कि, 'मैं संकोच कर रहा था कि तुम्हारे हस्बैंड ने