एक पत्र ज़िंदगी के नाम

  • 900
  • 318

एक पत्र - ज़िंदगी के नाम प्रिय ज़िंदगी, मधुर स्मृति कैसी हो तुम ? बहुत दिनों से तुमसे मुलाक़ात नहीं हो पाई । ना जाने कहाँ खो गई हो जो कभी मिलती ही नहीं | तुम जब से गई हो तबसे एक एक बार भी मेरी खबर नहीं ली | आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी इसलिए सोचा कि पत्र लिखकर ही तुम्हारा हालचाल जान लेती हूँ | इधर मैं भी तुम्हें ‘जीने की लालसा’ में इतनी व्यस्त हो गई कि मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं तुम्हें जी रही हूँ या काट रही हूँ ?