अधूरा उपन्यास...

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अधूरा उपन्यास देर रात का समय था। बारिश की बूँदें खिड़की पर थपथपा रही थीं। विशाल अपने कमरे में बैठा हुआ था, उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। उसे पिछले कुछ दिनों से एक अजीबोग़रीब एहसास से घिरा हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके पीछे पड़ा हो, लेकिन वह इसे मात्र उसका भ्रम या वहम्... समझ कर टाल देता था।उसने जब से नयी नौकरी शुरू की थी, तब से ही उसके जीवन में कुछ अजीब घटनाएँ होने लगी थीं। हर रात उसे महसूस होता कि कोई उसे देख रहा है। कभी-कभी तो ऐसा लगता कि