अब आगे, अपनी बात कह कर रूही के पिता अमर बहुत खुश हो जाते हैं कि अब तो उन की जान को भी खतरा नही होगा और न ही उन के दोस्त सुखविंदर को और हां, वो बात अलग है कि उन्होंने अपनी खुशी अपने चेहरे पर जाहिर नही होने दी थी...! मगर लगता है हमारे राजवीर ने तो किसी के चेहरे तक को पढ़ने में पीएचडी कर रखी है वो तो तभी समझ गया था कि कुछ तो गड़बड़ जरूर से है नही तो ये यानी रूही के पिता अमर जो इतनी देर से राजवीर को उस के विला को ही