अमावस्या की रात थी। चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया हुआ था, जैसे काले समंदर में डूबा हो सब कुछ। हवाओं की सिसकियाँ एक सिहरन पैदा कर रही थीं। गाँव के बुजुर्ग कहते हैं, ऐसी रात में आत्माएँ जागती हैं। उसी रात, वह पुरानी हवेली अपनी खामोशी के साथ खड़ी थी, जो सालों से वीरान पड़ी थी। हवेली के टूटे फाटकों से झाँकती परछाइयाँ मानो किसी का इंतजार कर रही थीं। हर कदम पर बिखरे हुए पत्ते और टूटी हुई लकड़ियों की आवाजें उस डरावने माहौल को और भी भयावह बना रही थीं। कोई नहीं जानता था कि हवेली के अंदर