शून्य से शून्य तक - भाग 33

  • 597
  • 195

33==== अब दीना जी समय पर ऑफ़िस जाने लगे थे | कर्मचारियों को समझने, उनकी परेशानियों का समाधान निकालने में उन्हें पहले जैसी रुचि होने लगी थी | उन्होंने एक लंबी साँस ली और महसूस किया कि वे जीवित हैं और जैसे तसल्ली का एक टुकड़ा उनके भीतर पसर गया | दरवाज़े पर नॉक हुई --- “प्लीज़ कम इन----”उन्होंने आँखें उठाकर देखा उनके चैंबर का दरवाज़ा खोलकर मि.केलकर खड़े थे |  “सर!आपसे एक प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करना चाहता था--- | ”वहीं खड़े-खड़े उन्होंने कहा |  “क्यों भई, जब मैं नहीं था तब क्या करते थे? वैसे ही करिए