...मेरे..वक्त की हसीन लम्हो की, तुम वो किताब हो,जिसके हर एक पन्ने पर नाम है .."तुम्हारा"।कहा से ढूंढकर लाते हो .. इतने सारे शब्द...?नीलिमा ने पूछा ।जी ....शुक्रिया कहते हुए नारंग ने कहा....ये तो यही है,बस आप को देखकर सूझ रहे है...नीलिमा...अच्छा जी।जी...मैं तो बस अहसास लिखता हूं।जो कही खो जाते है।बस उन्हें समेटकर लाता हूं।और अपने "शब्दों" में पिरोकर उनकी "माला" बनाता हूं जी......अपने व्यस्त हो रहे काम में नारंग से बात करना नीलिमा को सुकून देता था।इन्ही सारी बातों से तो ,वह सबको मोहित कर लेता था। किसी से अपनी स्तुति को सुनकर आखिर आनंद की प्राप्ति किसे