शून्य से शून्य तक - भाग 26

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26=== जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, उसकी बुद्धि कुछ अधिक ही चलने लगी|  उसकी माँ ने कंसीव करते समय सोचा एक भी बार एक कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनकी छोटी सी बेटी का क्या होगा? एक भी बार अस्पताल जाते समय लगाया अपनी बेटी को अपने गले से ? लाड़ से पुचकारा उसे? एक भी बार बताया उसे कि अगर उसे अकेला रहना पड़े तो कैसे रहेगी? कैसे निकलेगी उस अंधे कूँए से जिसमें वे उसे सदा के लिए कैद कर गईं हैं!  “नहीं—नहीं, सब स्वार्थी हैं---स--ब---”वह चिल्लाई और अपने हाथ में पकड़े हुए काँच के ग्लास