शून्य से शून्य तक - भाग 18

  • 543
  • 153

18=== दीना जी को मानो विश्वास ही नहीं आ रहा था और माधो तो ऐसे आँख फाड़कर देख रहा था मानो कोई भूत देख रहा हो| कभी इतनी जल्दी आती होगी आशी लॉंग-ड्राइव से?  “मैं कोई भूत नहीं हूँ ---”आशी ने मौन तोड़ा |  “हाँ—अं—आओ बेटा—बैठो–नाश्ता करो—” “नहीं, आप करिए नाश्ता| मेरा नाश्ता तो महाराज के बच्चे ने बर्बाद कर दिया---| ” “ऐसे नहीं कहते बेटा –” “पापा—आप मुझे ये बताइए, बुलाया क्यों था----? ” “क्यों, क्यों मैं अपनी बेटी को बुला नहीं सकता और मुझे तुमसे अपनी खुशी शेयर करने का हक नहीं है--? ” दीनानाथ धीरे से बोले