शून्य से शून्य तक - भाग 17

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17=== दौड़ता-भागता जब माधो कमरे में पहुँचा तो दीनानाथ बाथरूम के बाहर खड़े थे | वह हड़बड़ा गया|  “क्या हुआ मालिक ? ” “अरे! कुछ नहीं भाई ज़रा बाथरूम गया था| ” “पर—आपकी कुर्सी तो---”उसने दूर पलंग के पास पड़ी हुई कुर्सी की ओर इशारा करके आश्चर्य से पूछा|  “हाँ, वो मेरी ही कुर्सी है | आश्चर्य क्यों हो रहा है? आज सोचा चलकर देखूँ वहाँ तक –और देखो सहारा भी नहीं ले रहा हूँ---” दीनानाथ बड़े सधे हुए कदमों से चलकर पलंग तक आ गए| माधो के चेहरे पर मानो खुशी की तरंगें उमड़ पड़ीं, आँखों में आँसु भर