शून्य से शून्य तक - भाग 5

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5=== पर्वतों की शृंखला से सूर्य की ओजस्वी लालिमा आशी के गोरे मुखड़े पर पड़ रही थी और वह गुमसुम सी लॉबी में खड़ी एक महक का अनुभव कर रही थी| उसने देखा, पवन के झौंके के साथ रंग-बिरंगे पुष्प मुस्कुरा रहे हैं जैसे उससे बात कर रहे हैं| वह सोच ही रही थी कि सुहास हाथ में ट्रे लेकर उसके पीछे आ खड़ी हुई|  “शुभ प्रभात आशी दीदी---”उसके चेहरे पर भी सूर्य की किरणों से भरी एक सजग मुस्कान पसरी हुई थी|  “हाय, गुड मॉर्निंग, तुम कॉफ़ी क्यों ले आईं? रानी लाती है न रोज़----”आशी ने मुस्काकर सुहास से