शून्य से शून्य तक - भाग 1

  • 16k
  • 10.5k

माँ वीणापाणि को नमन जो साँसों की भाँति मन में विचारों की गंगा प्रवाहित करती हैं|  ================ समर्पित उन सभी क्षणों को जो न जाने कब एक-एक कर मेरे साथ जुडते चले गए ! !    स्नेही पाठक मित्रों से ! !  =============== हम कितना ही अपने आपको समझदार कह लें लेकिन कुछ बातें तभी समझ में आती हैँ जब ठोकर खाकर आगे बढ़ना होता है या उनको आना होता है यानि जीवन की गति ऐसी कि कब छलांगें लगाकर ऊपर पहुँच जाएं और कब जैसे पर्वत से नीचे छलांग लगा बैठें |  माँ ने एक बार लिखा था –