जिस्मो के साए तले

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जिस्मो के साए तलेजिस्मों के साए तले छिपे कितने राज़ हैं,नफ़रत के साँचे में ढले कितने चेहरे हैं।चेहरों पर नक़ाब हैं, नज़रों में घृणा की आग,दिलों में ईर्ष्या का जहर, ज़ुबां पर ज़हर की बाढ़।जिस्मों के साए तले छिपी ये खोखली आवाज़ें,इंसानियत का गला घोंटती ये नीची नज़रें।इंसान के नाम पर दानव बन बैठे हैं,रिश्तों को तोड़कर राख किया है।जिस्मों के साए तले छिपे वो दिल के काँटे,जो रिश्तों को चुभोकर ज़ख्म करते हैं सदा।अंधेरे का साया छंटे उजियारे की किरण से,इंसानियत की खोई शान लौटे फिर से।जिस्मो के साए तलेजिस्मों के साए तले, खो ना जाए ये रिश्ता,प्रेम की