द्वारावती - 35

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35गुल बलपूर्वक उठी। चारों दिशाओं में द्रष्टि डाली। कहीं कुछ भी नहीं बदला था। सभी दिशाओं में वही शून्यता व्याप्त थी। “यह कैसी शून्यता है? शिक्षक कहते थे कि शून्य का कोई मूल्य नहीं होता। शून्य स्वयं मे शून्य ही होता है। अनेक शून्य साथ मिलकर भी शून्य ही रहते हैं। तुम सत्य कह रहे थे, शिक्षक। तुम्हारी यह बातें उस समय मुझे समज नहीं आ रही थी, किन्तु अब सब समज आ रहा है। यह शून्यता भी मूल्यहिन है। यहाँ भी अनेक शून्य साथ मिले हुए हैं। सागर, लहरें, हवा, तट , धजा, मंदिर, पंखी, दिशा, तमस, एकांत, स्थिरता