द्वारावती - 34

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34घर से जब गुल निकली तो रात्रि का अंतिम प्रहर अपने अंतकाल में था। “इतने अंधकार में कहाँ जा रही हो? प्रतिदिन जिस समय तुम समुद्र तट पर जाती हो वह समय आने में अभी समय है।” गुल के पिता ने गुल को रोका। “जी, लौटकर बताऊँगी।” गुल के चरण अधीर थे। वह दौड़ गई। समुद्र के तट पर आ गई। समुद्र को अंधकार में निहारती, नीरवता में समुद्र को सुनती वह भड़केश्वर मंदिर की तरफ गति करने लगी। समुद्र की ध्वनि में एक लयबध्ध संगीत था। उस लय में वह मग्न थी। कुछ क्षण पश्चात वह लय खंडित हो