रुबिका के दायरे - भाग 2

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भाग -2 महबूबा ने रूबिका पर जब बहुत ज़्यादा दबाव डाला तो उसने मन ही मन सोचा यह तो बिल्कुल गले ही पड़ गई है। अपनी बात पूरी सुनाए बिना मानेगी नहीं। चलो सुन ही लेती हूँ। उसने महबूबा से कहा, “ठीक है, इतना कह रही हो तो बताओ, लेकिन इस तरह बात-बात में मज़हब का सहारा नहीं लिया करो। इतनी पढ़ी-लिखी तो हूँ ही कि कौन-सी बात मज़हब की, क़ौम की है, कौन-सी नहीं, यह अच्छी तरह समझती हूँ।” यह सुनते ही महबूबा ने कहा, “अल्लाह का शुक्र है कि तुम बात सुनने को तैयार हुई। देखो अभी बीते