छब्बीस साल पुराना पेड़कहानी / Sharovan***‘मैं जिस जगह पर बैठी हुई हूं वह स्थान और उसका अधिकार आपकी बेटी महुआ की मां का है। और मैं जिस परिवार से आई हूं, वहां के लोग दूसरे की थाली में मुंह नहीं मारा करते हैं। मैं इसी वक्त अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने घर जा रही हूं।***संध्या के चार बज रहे थे। वातावरण में अभी भी गर्मी की घमस बरकरार थी लेकिन, गर्मी फिर भी इसकदर नहीं थी कि बाहर न निकला जा सके। सांझ की दम तोड़ती हुई सूरज की रश्मिियों के कारण दिन भर के जलते हुये तापमान में