नमस्ते, गुलाबो! 'कौन गुलाबो...? आज फिर एक नया नाम।''जी आदत से मजबूर हूँ, दोस्त! ''लेकिन इस गुलाबो को असलियत में देखोगे तो, सुनहरी कल्पनाओं के शीश महल भुरभुरा कर ढह जायेंगे। "हाँ... ऐसा क्या? ""चेहरे पर इतने पिम्पल हैं।""झूठी कहीं की। मुझे धुधंली सी शक्ल याद है। जब तुमने डरते- डरते अपनी पिक सेंड की थी। फिर तुरंत हटा ली थी। उसमें तो चन्द्रमुखी लग रही थीं।वह क्या किसी दूसरे की थी? ""उफ्फ..! फिर एक नया नाम? हद कर दी। ""आदत है, जानती ही हो। वह छोड़ो। तस्वीर वाली बात बताओ? "" वह फोटो तो, मेरी ही थी। दूसरे की