लागा चुनरी में दाग़--भाग(५७)

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प्रत्यन्चा वापस आकर रोई नहीं,अब कि बार उसने अपना मन पक्का कर लिया,वो भी अब धनुष को दिखा देना चाहती थी कि जैसे उन्हें उसकी परवाह नहीं है तो मुझे भी उनकी कोई परवाह नहीं, मैंने क्या दुनिया भर की परवाह करने का ठेका ले रखा है,सब अपने अपने मन की करते हैं तो मैं भी अपने मन की क्यों ना करूँ.... कुछ देर के बाद उसने नीचे आकर दोपहर का खाना बनाया और सबको खाना खिलाकर अपने कमरे में चली गई,धनुष खाना खाने नहीं आया था लेकिन प्रत्यन्चा आज उसे खाना खिलाने आउट हाउस नहीं गई,लेकिन उसने कड़ा मन