23एक नूतन प्रभात जन्म ले रहा था। केशव समुद्र की तरफ़ चलने लगा। उस कंदरा तक जा रहे चरणों में एक उत्साह था तो मन में अनेक विचार जो चलते चरणों से भी अधिक तेज गति से चल रहे थे। चरणों से भी पहले केशव का मन, केशव के विचार उस कन्दरा तक पहुँच गए। ‘मैं उस कंदरा की शिला पर बैठ जाऊँगा, ओम् के नाम का जाप करूँगा, सूर्य को अर्घ्य अर्पित करूँगा। वह कंदरा के भीतर होगी, मेरे सारे मंत्रों को सुनेगी, उसे स्मरण करने का प्रयास करेगी, स्वयं उसका उच्चारण करेगी। मैं नीचे उतरकर कन्दरा के भीतर