उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों आशा है इस भीषण गर्मी में आप अपना ध्यान रख रहे होंगे |अब किया क्या जाए जैसा मौसम आता है हम सबको उसी के अनुसार उस मौसम को ओढ़ना बिछाना पड़ता है | हमने कितने वर्षों से प्रकृति का दोहन किया अब हर चीज़ की एक सीमा होती है न ! प्रकृति की भी सीमा जवाब दे गई और परिणाम हम सब देख ही रहे हैं | हम सबको संभलकर चलना होगा और किसी भी काम को सोच-समझकर करना होगा | एक कहानी याद आई जिसे आप सबसे साझा कर रही हूँ | एक बार एक आदमी