लागा चुनरी में दाग़--भाग(४४)

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डाक्टर सतीश प्रत्यन्चा को पीछे से बहुत देर तक देखते रहें,लेकिन उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन है वो और उस के पास जाकर भी उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी उनकी ,तभी एकाएक प्रत्यन्चा पलटी तो डाक्टर सतीश की नजर उस पर ठहर गई,बिना पलके झपकाएंँ मुँह खोलकर वे उसे देखते ही रह गए,तभी डाक्टर सतीश की माँ शीलवती उनके पास आकर बोलीं.... "मुँह तो बंद करो डाक्टर साहब!" तब डाक्टर सतीश अपनी माँ से बोले... "माँ!....ये तो प्रत्यन्चा जी हैं" "बच्चू! खा गए ना धोखा,देख ! आज उसे मैंने तैयार किया है,लग रही