अनुसुइया जी के जाने के बाद प्रत्यन्चा भागीरथ जी से बोली.... "कल बहुत मज़ा आने वाला है दादाजी! इतने सारे बच्चे,खूब हल्ला गुल्ला मचेगा", "हाँ! बेटी!",सच कहा तूने,लगता है तुझे हल्ला गुल्ला बहुत पसंद है",भागीरथ जी बोले... "हाँ! मुझे लोगों से मिलना जुलना बहुत पसंद है",प्रत्यन्चा बोली... तब उन दोनों की बात सुनकर धनुष बोला.... "मैं नहीं जाऊँगा वहाँ" "लेकिन क्यों?",प्रत्यन्चा ने पूछा... "मैं क्या करूँगा,बच्चों के बीच जाकर",धनुष बोला.... "अरे! चलिएगा! बहुत मज़ा आऐगा आपको बच्चों की शरारतें देखकर",प्रत्यन्चा बोली.... "तुम्हें देखकर तो ऐसा मालूम होता है कि जैसे तुम्हारा ही जन्मदिन हो",धनुष बोला.... "ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",