लागा चुनरी में दाग़--भाग(३८)

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भोर हो चुकी थी और प्रत्यन्चा आज एक नई उमंग के साथ जागी थी,क्योंकि कल रात जो धनुष के साथ उसकी बातें हुईं थीं उससे उसे लगा था कि अब शायद धनुष सुधर जाऐगा और उसके सुधरने से दादाजी और चाचाजी को बहुत खुशी मिलेगी,अगर ऐसा होता है तो घर के हालात बदल जाऐगें,वो यही सब मन में सोच रही थी,अभी तक वो अपने बिस्तर पर ही बैठी थी और भागीरथ जी के जागने का इन्तजार कर रही थी,फिर कुछ देर बाद भागीरथ जी भी जाग उठे और वो प्रत्यन्चा से बोले.... "जाग गई बिटिया! चल अब घर चलते हैं