उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 8

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भाग 8 आज लगभग दो वर्षों के पश्चात् मैं माँ के घर आयी थी। अन्तराल पश्चात् आयी थी, अतः घर के कोने-कोने से परायेपन की गन्ध आ रही थी। यद्यपि घर में कुछ भी परिवर्तित नही हुआ था। फिर भी बहुत कुछ बदल गया था। मेरे मन में यह भाव रह-रह कर आता कि अब मेरा इस घर में कुछ नही है। यह एक पराया घर है, जहाँ मेरा कुछ भी नही है। हमारा समाज यही तो शिक्षा देता है कि विवाह पश्चात् ससुराल ही लड़की का घर हो जाता है और पीहर बेगाना। मैं परायी हो चुकी हूँ। माँ