मैं श्रद्धानंद कैसे बना?गुरुकुल का दृश्य : (संध्या का समय) दो विद्यार्थी कृपाल व विभु दाईं ओर से किसी विषय पर चर्चा करते हुए आ रहे है। और उनमें से कृपालके हाथ में एक पुस्तक है। कृपाल : देखो मित्र! ( आश्चर्य व गर्व के मिले-जुले भाव के साथ) कैसा महान व्यक्तित्व रहा होगा इनका। कैसे इन्होंने पतन की निचली गहराइयों से उठकर उत्थान की गगनचुंबी ऊंचाइयों को छुआ होगा। ( विभु पुस्तक के पाठ को देखने लगता है) ऐसे व्यक्ति का जीवन चरित्र कितना लोमहर्षक और प्रेरणादायी हो सकता है, नहीं–नहीं यह कल्पना का विषय नहीं