इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट् दिलीप के पुत्र ही भगीरथ नाम से विख्यात हुए। उनके पूर्वपुरुषों ने कपिल की क्रोधाग्नि से भस्मीभूत सगर पुत्रों का उद्धार करने के लिये गंगाजी को लाने की बड़ी चेष्टा की और तपस्या करते करते प्राण त्याग दिये, परन्तु कृतकार्य न हुए। अब महाराज भगीरथ राज्यसिंहासन पर आरूढ़ हुए। ये बड़े प्रतापशाली राजा थे। ये देवताओं की सहायता करने के लिये स्वर्ग में जाते और इन्द्र के साथ उनके सिंहासन पर बैठकर सोमरस पान करते। इनकी प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। इनकी उदारता, प्रजावत्सलता और न्यायशीलता की प्रख्याति घर-घर में थी। इनके मन में यदि कोई चिन्ता