रक्तिम ने होंठ चबाकर सिर झुका लिया और धीमी आवाज में बोला, "जानता हूँ, मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं वनिता। तुम इतने अमीर घराने से हो और मैं...""रक्तिम और कुछ मत कहो..." कहते हुए वनिता ने उसके कंधे पर सिर टिका दिया।रक्तिम ने कुछ नहीं कहा। वनिता भी कुछ नहीं बोली। ख़ामोशी ने जो कहना था, कह दिया था।उस दिन के बाद से इसी तरह सबसे छुपकर उनकी मुलाक़ातें होती रहीं। गुज़रते वक्त ने दिलों के बीच की दूरी पाट दी। मगर हैसियत का फ़ासला अब भी दोनों के दरमियान दीवार बनकर खड़ा था। वनिता जानती थी कि इसी फ़ासले की