द्वारावती - 13

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13गुल द्वारिकाधीश के मंदिर को देखकर मन ही मन ईश्वर से क्षमा माँगने लगी। अनेक मंत्रों का उच्चार करने लगी। समय व्यतीत होता गया। सूर्योदय होने लगा। “गुल, तुम कब से इस प्रकार खड़ी हो। क्या तुम्हें आपने नित्यक्रम को नहीं करना है? कुछ ही समय में प्रवासी आने लगेंगे। तुम्हें उसे भी तो...।” उत्सव के शब्दों ने गुल का ध्यान भंग कर दिया। वह उत्सव की तरफ़ मूडी। “गुल, यह सब क्या है? तुम किसी दुविधा में हो?” “उत्सव, आज प्रवासियों को तुम ….।”“मैं? मैं क्या बताऊँगा प्रवासियों को? मैं तो स्वयं ही एक प्रवासी ही हूँ।”“ठीक है, तुम