श्रीदिवदासजी के वंश में उत्पन्न श्रीयशोधरजी के घर में अनपायनी भक्ति प्रकट हुई। आपके स्त्री-पुत्र आदि सभी लोग आपके मत से सहमत थे। सभी भगवत्परायण थे। आप भगवान् की एवं उनके भक्तों की सद्भाव से सेवा करते थे। आपके श्रीमुख से निरन्तर श्रीरामनामरसामृत की धारा बहा करती थी। श्रीविश्वामित्रजी ने अयोध्यापुरी में आकर श्रीदशरथजी से कहा─ हे राजन् ! यज्ञरक्षा के लिये आप अपने दोनों पुत्र श्रीराम और श्रीलक्ष्मण को दे दीजिये। श्रीदशरथजी ने दे दिया, तब श्रीरामलक्ष्मण ने श्रीविश्वामित्रजी के साथ गमन किया। सीतापति श्रीरामचन्द्रजी के इस प्रथम वनगमन का आपने अति सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। गान