पिंजरा सोने का पिंजरा हैं फिर भी पंछी उदास हो रहा है l खुले आसमाँ की तरह मुकम्मल आज़ादी कहा है ll सुना सुना लम्हा लम्हा सुने सुने रात और दिन कि l अभी तक दरिया जीतना पानी निगाहों से बहा है ll बड़े से आलीशान बंगले में कई विचित्र प्राणी की l भीड़ में रहते हुए उसने अकेलेपन का दर्द सहा है ll उड़ने की मज़ा कब ले सकेंगा वहीं सोचता है वो l सुकून ए साँस जंगलों की हवा बहती हो वहा है ll बैगानो की बस्ती में आ बसा है वो जीना