उजाले की ओर –संस्मरण

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====================== स्नेहिल नमस्कार मित्रों आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप सबकी होली खूब रंग-बिरंगी व उल्लासपूर्ण वातावरण में आनंद से व्यतीत हुई होगी | रंगों के इस पर्व की महत्ता हम मनुष्यों से अधिक और कौन जान-समझ सकता है ? जिसके जीवन में किसी भी कारण से एकाकी और अकेले में रहने की आदत पड़ जाती है, उसे अपने भीतर कैसा महसूस होता होगा ? हम सब समाज के अंग हैं, हमारे दो-चार लोगों के परिवार के अतिरिक्त समाज हमारा परिवार है जिससे हम हर दिन जुड़े रहते हैं, कभी दुख में तो कभी सुख में ! आज