प्रस्तुत कहानी 1947 के विभाजन एम उसके बाद की त्रासदी का वर्णन करती है। मेरा एक सिख मित्र जो अपनी मां को माजी कहता है और मेरे साथ मुंबई में काम करता है। विभाजन से पहले माजी रावलपिंडी में रहती है। उसे रावलपिंडी से बहुत प्यार है। वह कभी रावलपिंडी से बाहर गई ही नहीं , उसके लिए रावलपिंडी ही उसका संसार है। वह रावलपिंडी में दो मंजिला मकान में रहती है। उसे मकान के नीचे ही उनकी दुकाने हैं जो मुस्लिम लोगों नए किराए पर ले रखी है। उनकी अपनी जमीन भी है। दूध घी वह पड़ोस में रहने