आलेख-सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आगे कैसे बढ़ें?********************* मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।जिसका अपना सामाजिक और मानवीय धर्म भी है, जिसका निर्वहन उसे करना ही होता है। चूंकि मानव का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संबंध समाज और धर्म से होता है, जिससे तमाम व्यस्तताओं विवशताएं और इच्छा अनिच्छा के बावजूद वह इन सबसे पूर्णतया विमुख नहीं रह पाता, कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो यह भी कह सकते हैं कि इसके पीछे कुछ भय, मान्यताएं, परंपराएं, सामाजिक, धार्मिक बाध्यताएं भी हैं, जिससे निकलने की उत्सुकता भी वह नहीं दिखाता। क्योंकि इसमें वह अपना कोई नुकसान भी नहीं देखता, अपितु मानसिक तनाव, असुविधा,