समुद्र की शीतल वायु ने थके यात्रिक को गहन निंद्रा में डाल दिया, उत्सव सो गया। समय की कुछ ही तरंगे बही होगी तब दूर किसी मन्दिर से घन्टनाद हुआ। उत्सव उस नाद से जाग गया। सूरज अभी भी निकला नहीं था। अन्धकार अपने अस्तित्व के अन्त को देख रहा था किन्तु विवश था। प्रकाश के हाथों उसे परास्त होना था। घन्टनाद पुन: सुनाई दिया। धुंधले से प्रकाश मे उत्सव ने दूर समुद्र के भीतर किसी मन्दिर की आकृति का अनुभव किया। ‘मुझे किसी मन्दिर में नहीं जाना है। मुझे इन मंदिरों से अत्यंत दूर रहना होगा।’ वह मन्दिर से