रंग-बिरंग

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आशा रानी को इधर नौकरी देने से पहले मुझे स्कूल-प्रबन्धक के कमरे में बुलाया गया। स्कूल प्रबन्धक को मेरी समझ पर बहुत भरोसा था और वे प्रत्येक नियुक्ति मेरी संस्तुति पर ही किया करते थे-उनकी राय में पहली कक्षा के पाँच विद्यार्थियों से शुरू किए गए इस स्कूल को बारह वर्ष की अवधि में आठ कक्षाओं के 661 विद्यार्थियों वाले स्कूल में बदल देना मेरे ही परिश्रम एवं उद्यम का परिणामी फल था। “ प्रणाम, सर, ” उन के कमरे में अपना आसन लेते ही मैं ने उन का अभिवादन किया। ’’आइए, मिस शुक्ल, “ स्कूल-प्रबन्धक ने मेरा स्वागत किया,