अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्र थे। महाराज पांडु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र और सबसे अच्छे धर्नुधारी थे। वे द्रोणाचार्य के श्रेष्ठ शिष्य थे। जीवन में अनेक अवसरों पर अर्जुन ने इसका परिचय दिया था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाले भी अर्जुन ही थे। पांडु की ज्येष्ठ पत्नी वासुदेव कृष्ण की बुआ कुन्ती थीं, जिसने इन्द्र के संसर्ग से अर्जुन को जन्म दिया था। कुन्ती का एक नाम 'पृथा' भी था, इसलिए अर्जुन 'पार्थ' भी कहलाए। बाएं हाथ से भी धनुष चलाने के कारण 'सव्यसाची' और उत्तरी प्रदेशों को जीतकर अतुल संपत्ति प्राप्त करने के कारण 'धनंजय'