बचपन की कविता - नर हो ना निराश करो मन को

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नर हो ना निराश करो मन को आप सभी को सादर प्रणाम ️अब बात करते हैं चर्चा के मूल विषय पर - : बचपन की कौन सी कविता आपको अभी भी याद है। उस कविता से आपकी कौन सी यादें जुड़ी हैं। मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है, हाथ लगाओ डर जाएगी, बाहर निकालो मर जाएगी, इसी कविता से बचपन का वास्ता पड़ा था, शनैः शनैः जीवन आगे बढ़ा तो मैथली शरण गुप्त जी की काव्य पंक्तियों ने मन मस्तिष्क को झकझोर दिया, जीवन की सीख दे रही थी ये कविता, - नर हो, न निराश करो