बात उन दिनों की है जब मैं गांव के पास के कस्बे खेड़ली से सीनियर सेकेंडरी (इंटरमीडिएट) परीक्षा पास कर जिला मुख्यालय अलवर शहर के कॉलेज में प्रवेश लिया था। पहली बार इतने बड़े शहर में रहने, तसल्ली से देखने का अवसर मिला था । कॉलेज का छात्र बनते ही हमारे पंख निकल आए थे । खुली हवा के झोंके, कॉलेज आने- जाने, न आने की स्वच्छंदता, यूनिफॉर्म की छूट, खाली पीरियड में कॉलेज के मुख्य दरवाजे पर स्थित चाय की थड़ी, जिसको अनौपचारिक कैंटीन कह सकते थे, उस पर चाय पीना, दूर-दूर तक घरवालों के नियंत्रण का अभाव, शहर