मैं भाई नहीं हूँ तेरा.

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( यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है।)बात कुछ ज्यादा पुरानी तो नहीं है, बस यहीं कुछ सन् 1940 के आस पास की ही बात है। तब मैं शायद पांचवीं कक्षा में पढ़ती होऊंगी। शुरू से ही चंचल रही हूं मैं ,मुझे स्कूल जाना तब भी किसी जेल से कम नहीं लगता था।हालांकि पिता जी एक जाने माने व्यपारी थे ,और ब्रिटिशर्स के साथ भी उनके अच्छे संबंध थे। लेकिन मुझसे ज्यादा अच्छे से ये बात किसे पता होगी कि अगर पिता जी का बस चलता तो वो उन सब फिरंगियों का अब तक खून कर चुके होते।पिता जी ने उन फिरंगियों