हँसी की तह में छिपा राज़

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ठंडी हवा का झोंका कमरे में घुसा, जैसे कोई अदृश्य मेहमान का स्वागत कर रहा हो। मोहिनी मिट्टी के तेल का दीपक जला रही थी, घर के कोने-कोने को रोशन करने के लिए संघर्ष कर रही थी। गाँव में बिजली कम ही आती थी, खासकर उस ज़माने में तो बिल्कुल ही दुर्लभ थी। अचानक, हवा का झोंका तेज हुआ, दीपक बुझ गया और कमरा अंधकार में डूब गया।"दादी, बिजली चली गई क्या?" अँधेरे में आवाज़ आई, मोहिनी के नौ साल के पोते आर्यन की।"नहीं, बेटा," मोहिनी ने जवाब दिया, थोडी घबराई हुई सी। "दीपक बुझ गया है।"जैसे ही उसने जवाब