कल्पना से वास्तविकता तक। - 7

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पूरी कहानी समझने के लिए आप पहले के भाग हमारी प्रोफ़ाइल विंडो पर देख सकते हैं। अब आगे .... जब क़िस्मत हमारी जिंदगी में कुछ नया करना चाहती है तब चाहे हम कुछ चाहें या ना चाहें सब अपने आप होता ही जाता है… मानो जिंदगी हमारी ना होकर किसी और की हो जहां हमारा काम बस उतना ही होता है जितना किसी कठपुतली के खेल में एक कठपुतली का होता है। कुछ ऐसा ही खेल किस्मत अब नेत्रा और उसके दोस्तों के साथ भी खेल रही थी। उनमें से कोई नहीं जानता था कि वो जहां है वहां क्यूं